Kabir Das Biography in Hindi – संत कबीर दास की जीवनी

Kabir Das Biography in Hindi

Kabir Das Biography in Hindi : आज हम एक ऐसे इंसान के बारे में जानने वाले है जो दुनिया को दूसरे नज़रिये से देखते थे| उन महापुरुष का नाम है “संत कबीर दस“| इनको हर कोई अपनाता नहीं था मगर अपने दोहों से उन्होंने सब का दिल जीत लिया था | संत कबीर दास की जीवनी के बारे में जाने से पहले हम उनके कुछ लोकप्रिय दोहो को देख लेते है | ताकि आप इनके विचारधारा को समझ सके और यह इतने महान कैसे बने| 

तो आइये शुरू करते है संत कबीर दास जी के दोहे:

“पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।”

अर्थ– भले आप कितनी पढ़े लिखे हो  कुछ भुई कर ले अगर आपके अंदर इंसानियत नहीं तोह सब बेकार है | जिसके अच्छे कर्म  होंगे वह हमेशा स्वर्ग  में जाएगा | जो ढाई अक्षर प्रेम का है जिसके अंदर इंसानियत जो काइंड होता है उसी को दुनिया पूजती है याद रखिएगा ऐसा कबीर दास  जी ने कहा है जो प्रेम के साथ रहता वह  सिंघासन पर जाएगा जब उसकी मृतयु और  दूसरी तरफ कोई बुरे कर्म करता है इंसानियत नहीं दिखता है वह बल्कि नरक मैं जाएगा |   

“जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।” 

अर्थ– इस दोहे में कवी कबीर दस हमें यह बताना चाहते हैं कि जब तक हम समुंदर के किनारे बैठे रहेंगे समुद्र में डुपकी  नहीं मारेंगी तब तक हम उस समुंदर के अंदर जो खजाना छुपा हुआ है हम उसकी ख़ोज नहीं कर पाएंगे| हमें समुंद्र  में उतरना पड़ेगा चाहे कितना ही गहरा पानी हो, हमें तपना पड़ेगा ताकि हम एक सफलता और मुकाम तक पहुंच जाए| 

ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।” 

अर्थ– कबीर दास  जी यह बोलते है की अच्छे  शब्दों का प्रयोग  कीजिये सभी से प्रेम से बात  करें हर कोई आपसे खुश रहेगा  तो आपको दुआएं मिलेंगी और जब दुआएं मिलेंगे तो ब्रह्माण्ड आपको ऊँचा  दर्जा देगा | कभी भी किसी का दिल मत दुखाओ|

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Kabir Das Biography in Hindi

संत कबीर दास जी की एक छोटी जीवनी

पूरा नाम संत कबीर दास
जन्म 1398
मृत्यु 1518
पिता का नाम नीरू
माता का नाम नीमा
पत्नी का नाम लोई
मुख्य रचनाएं रमैनी, साखी, सबद
गुरु का नाम आचार्य रामानंद

कबीर दास जी का प्रारंभिक जीवन

भारत के  सबसे महान कवि संत कबीर दास जी का जन्म 1398 में वाराणसी के पास लहरतारा ,उत्तर प्रदेश मैं हुआ था | कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि संत कबीर दास जी की माँ  एक विधवा  ब्राह्मण थी जो उन्हें वाराणसी तालाब के पास  छोड़कर चली गई थी तभी उन्हें दो मुस्लिम मिले जिनका नाम था नीरू नीमा और उन्होंने कबीर दास का पालन पोषण किया था | 

कबीर दास जी शिक्षा

संत कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे क्योंकि उनके मां-बाप काफी गरीब थे उन्हें रोज दो वक्त की रोटी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था | उन्हें किताबी ज्ञान में ज्यादा रुचि नहीं थी| 

कबीर दास जी की प्रचलित रचनाएँ

उनकी रचनओं में उनकी सरलता का भाव दिखाया है | कबीर दास जी ने अपने दोहो के माध्यम से बताया है संसार में सही से जीवन जीने का तरीका एंव संसार का नियम बताया है जो की अमूल्य है | उनके शिष्यों ने उनके दोहो को बीजक नाम के काव्या संग्रह में एक साथ रखा है, काव्य संग्रह में से कुछ मुख्य रूप से तीन भाग है, जिनका नाम साखी, सबद और रमैनी है| आइये इनपर एक नज़र डालते है | 

साखी – यह शब्द संस्कृत शब्द साक्षी से लिया गया है इसका अर्थ है धर्म का उद्देश्य इसमें कहीं बार कबीर दास जी की शिक्षा और सिद्धांतों का जिक्र किया गया है | 

सबद – कबीर  दास जी की सभी रचनाओं में से यह उत्तम क्योंकि उन्होंने इसमें अपने प्रेम व अंतरंग साधना का जिक्र किया है| 

रमैनी – यह रचनाओं का तीसरा हिस्सा है इसमें कबीर दास जी ने अपने कुछ दार्शनिक व रहस्यवादी का जिक्र किया गया है| वही उन्होंने अपनी तीसरी रनचा में चौपाई छंद का भी उल्लेख किया है| 

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कबीर दास जी की गुरु शिक्षा

संत कबीर दास जी ने आचार्य रामानंद से उनके शिष्य बनने  की इच्छा जताई क्योकि वह उस समय के प्रसीद एंव विदवान ब्रह्मांड थे परन्तु उस समय जाती का बहुत चलन था चुकि कबीर दस जी को मुस्लिम ने पाला पोसा था तो आचार्य रामानंद ने उन्हें शिष्य बनाने से साफ़ इंकार कर दिया| कबीर दास जी ने भी ठान ली थी की वह उनके शिष्य बनके रहेंगे| वह उनके आश्रम भी गए वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया | उन्होंने कईं बार प्रयास करा परंतु उन्हें नाकामयाबी ही मिली| 

परन्तु एक दिन आचार्य रामानंद जब स्नान करने गंगा घाट पर गए तो कबीर दस जी ने घाट की सारी सीढ़ियों पर बाधायें लगा दी और केवल उस जग़ह पर रास्ता छोड़ा जहाँ पर कबीर दास जी सोये थे सूर्योदय से पहले काले अँधेरे के कारण वह कबीर दास को देख नहीं पाए और उन्होंने कबीर दास जी पर अपने पैर लगा दिये | उसी वक़्त उनके मुख से राम राम राम निकल गया | उस वक़्त कबीर दास जी को रामानंद के चरण स्पर्श हो गये थे और इस हादसे के बाद रामानंद जी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया | 

कबीर दास जी का विवाहित जीवन

कबीर दास जी का विवाह ‘लोई’ नामक कन्या से हुआ था | विवाह के बाद उन्हें दो संतान की प्राप्ति हुई | पुत्र का नाम कमाल था वही पुत्री का नाम कमाली था | उनकी भक्ति जीविका होने के कारण घर पर साधु-संतों का आना जाना लगा रहता था | इस कारण के चलते उनकी पत्नि उनसे अक्सर झगड़ा करती थी| कबीर दस जी उन्हें अपने दोहो के माध्यम से समझाते थे| 

एक और बात आपको बता दें यह भी माना जाता है की लोई पहले उनकी पत्नी थी बाद में वह उनकी शिष्या बन गयी | 

संत कबीर दास जी मृत्यु

कबीर दास जी अपना पूरा जन्म काशी में गुज़ारा था परन्तु वह अपने आख़री दिनों में मगहर में रहने लगे | उस समय लोगों का यह मानना था की अगर मृत्यु मगहर में होतो नरक मिलेगा और काशी मृत्यु होने पर स्वर्ग की प्राप्ति होगी | इसी अंधविश्वास को तोड़ ने के लिए वह मगहर में रहने का निर्णय लिया | सनं 1518 में उनकी मृत्यु हो गयी | 

उनके हिन्दू समर्थक चाहते थे की उनका अंतिम संस्कार उनके रीती रिवाज़ों से हो और दूसरी तरफ़ मुस्लिम अपने रीती रिवाज़ों से करना चाहते थे| इसी बात के चलते उनके शव से चादर उड़ गयी और फूलों का ढ़ेर पाया गया तभी आधे आधे फूलों से दोनों समर्थकों ने अंतिम संस्कार किया| उसी जगह पर उनकी समाधी बना दी गयी | 

कबीर दास जी को कैसे मृत्यु प्राप्त हुई इसका कोई सबूत तो नहीं मिला परन्तु बस इतना मालूम पड़ा है की उनकी मृत्यु सन 1518 में हुई | 

संक्षेद

कबीर दास जी भारत के सबसे महान कवि थे इसी कारण वश इतने वर्षों के बाद भी हम उनके बारे में पढ़ना पसंद करते है और कहीं सारी किताबों व ग्रंथो में उनका ज़िक्र हुआ है| आशा करते है आपको संत कबीर दास जी की जीवनी पसंद आयी होगी|  अगर आपको हमारा द्वारा लिखा गया Kabir Das Biography in Hindi पर लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर करना ना भूले और साथ ही आपका कोई सुझाव हो तो उसे कमेंट करके जरूर बताएं| धन्यवाद

Hindipool: Rahul हिंदी ब्लॉग इंडस्ट्री के प्रमुख लेखकों में से एक हैं, इनकी पढ़ाई-लिखाई, टेक्नोलॉजी, आदि विषय में असीम रूचि होने के कारण, इन्होने ब्लोग्स के जरिये लोगो की मदद करके अपना करियर बनाने का एक अनोखा एवं बेहतरीन फैसला लिया है|