नदी पर कविता – Poem On River In Hindi

Poem On River In Hindi

Poem On River In Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज के लेख में हम आपके साथ नदियों पर कविता शेयर करेंगे और यह कविता Poem On River हिंदी में होगी|

हमारे भारत देश में बहुत नदियां है और बहुत से कवियों ने नदी पर कविता लिखी हैं और आज हम उन सब कविता को सम्मिलित करेंगे| यह Nadiyo Ki Kavita for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, & 9 के लिए हैं|

नदियों का हमारे जीवन में बहुत योगदान है और यह हमारे लिए बहुत आवयश्क हैं. मनुष्य ने नदियों को इतना गन्दा कर दिया हैं जोकि हमारे भारत देश के लिए अच्छी बात नहीं हैं|

हम अपनी नदी की कविता के माध्यम से लोगो को जागरूक करने का प्रयास करेंगे|

8+ लोकप्रिय नदी पर कविता – Poem On River In Hindi

समय बर्बाद न करते हुए नदी पर कविता पढ़ना शुरू करते हैं

Best Nadi Par Kavita

हिम खंडों से पिघलकर, पर्वतों में निकलकर,

खेत खलिहानों को सींचती, कई शहरों से गुजरकर

अविरल बहती, आगे बढ़ती, बस अपना गंतव्य तलाशती

मिल जाने मिट जाने, खो देने को आतुर

वो एक नदी है। बढ़ रही आबादी

विकसित होती विकास की आंधी तोड़ पहाड़, पर्वतों को

ढूंढ रहे नई वादी, गर्म होती निरंतर धरा,

पिघलते, सिकुड़ते हिम खंड कह रहे मायूस हो,

शायद वो एक नदी है। लुप्त होते पेड़ पौधे,

विलुप्त होती प्रजातियां, खत्म होते संसाधन,

सूख रहीं वाटिकाएं छोटे करते अपने आंगन,

गौरेया, पंछी सब गुम गए, पेड़ों के पत्ते भी सूख गए

सूखी नदी का किनारा देख, बच्चे पूछते नानी से,

क्या वो एक नदी थी।


Latest Hindi Poem On River – यमुना नदी पर कविता

जब सारा जल

ज़हर हो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

जब यमुना का

अर्थ खो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

चट्टानों से लड़-लड़कर जो

बढ़ती रही नदी,

हर बंजर की प्यास बुझाती

बहती रही नदी!

जब प्यासा

हर घाट रो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

ज्यों-ज्यों शहर अमीर हो रहे

नदियाँ हुईं गरीब

जाएँ कहाँ मछलियाँ प्यासी

फेंके जाल नसीब?

जब गंगाजल

गटर ढो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

कैसा ज़ुल्म किया दादी-सी

नदियाँ सूख गई?

बेटों की घातों से गंगामैया

रूठ गईं।

जब मांझी ही

रेत बो रहा, क्यों नदियाँ चुप हैं?

-राधेश्याम बन्धु


Hindi Kavita Nadi Par (हिंदी कविता नदी पर )

आज कुछ पानी है नदी में.. कभी बहती थी… ..

कल-कल, झर-झर… वेगवती-सी…

झूमती-नाचती….. अल्हड़ युवती सी…

पर आज, कुछ चुप-सी हो गयी है.. न जाने किन गमो में खो गयी है

लगता है… बादल नाराज़ हो गए हैं इससे..

ना ही बरसते हैं अब… ना ही गरजते हैं अब ..

अपना सूना आँचल फैलाए…. किसी के इंतज़ार में बैठी है ..

आज कुछ नमी है, इसकी आँखों में…

आज कुछ पानी है नदी में… लेकिन धरा को हरा-भरा करने की चाहत

आज भी इसके.. मन में उमड़ती है…

आज भी ये लाखों-करोड़ों को, जीवन देने को तरसती है…

पर अपनों के हाथों ही…. सूखी पड़ गयी है ये…

अब किनारे भी … दूर हो गए हैं इससे….

किससे अपना दर्द कहे… यही विचारती है मन में….

हाँ, आज ‘कुछ’ पानी है नदी में..

– मीनाक्षी मोहन ‘मीता’


Poem On River Ganga In Hindi – गंगा नदी पर कविता

अविरल, कोमल, चंचल, निर्मल !

गंगा का यह पावन जल,

थोड़ा चंचल ,थोड़ा शीतल,

गंगा का यह पावन जल,

जो दरिया मिल जाए इसमें,

वह भी गंगा का पावन जल,

कभी न शांत हो,

हवा जब शांत हो,

चले यह हर पल!,

गंगा का यह पावन जल,

जब कोई स्नान करे,

जाए यह तब उछल- उछल,

गंगा का यह पावन जल,

काशी की ‘गरिमा’,

शिव की ‘महिमा’,

है गंगा का पावन जल,

देश- देश से आये वासी,

देखने गंगा का  पावन जल,

धन्य हुए है काशीवासी,

पाकर यह गंगा का पावन जल,

अविरल, कोमल, चंचल, निर्मल,

गंगा का यह पावन जल!

– अरुण जैसल
{ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय }


Poem On Yamuna River In Hindi

नदियों की वो रानी थी,

उसमें खूब रवानी थी,

उसकी एक कहानी थी,

एक नदी थी, मेरे शहर की,

जहाँ जहाँ वो जाती थी,

धरा वहाँ चिलकाती थी,

हरी-भरी लहराती थी,

एक नदी थी, मेरे शहर की,

अब खूब गिरे गंदला काला,

शासन के मुंह पर ताला,

एक नदी थी मेरे शहर की,

आज बनी गंदा नाला,


Short Poem On River in Hindi – नदी पर छोटी सी कविता

नदी निकलती पर्वत से,

मैदानों में बहती है |

और अंत में मिल सागर से,

एक कहानी कहती है |

बचपन में छोटी थी पर,

बड़े वेग से बहती थी|

आंधी तूफां, बाढ़ बवंडर,

सब कुछ हंस कर सहती थी |

मैदानों में आकर मैने,

सेवा का संकल्प लिया |

और बना जैसे भी मुझसे,

मानव का उपकार किया ||

– डॉ० परशुराम शुक्ल


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